Up News : पैमाइश के चक्रव्यूह में दम तोड़ ता डीएम आदेश ...........


क्या भू-माफियाओं कि भूमिका में आ चुके  हैं नवाबगंज तहसील के राजस्वकर्मी और लेखपाल।

पैमाइश में खेल कर भूमाफियाओं को लाभ पहुंचाते तहसीलकर्मी।


6AM NEWS TIMES लखनऊ, Published by, रविन्द्र यादव 9415461079, Updated by, Sun , 11 feb, 2024 , 8 : 11 AM, IST


बेशकीमती हो रहीं नवाबगंज तहसील की जमीनों पर तहसीलकर्मी का दबदबा कायम ।

बाराबंकी: सरकारी भूमि पर अवैध कब्ज़ा से लेकर अनियोजित प्लाटिंग तक। बैंक या किसी अन्य प्रकार की राजस्व बकायेदारों   की जमीनों की खरीद फरोख्त पर भू-माफियाओं जैसी भूमिका निभा रहे हैं। दशकों से जमे लेखपाल और राजस्वकर्मी।

 

योगी सरकार की अवैध निर्माण और प्लाटिंग के खिलाफ कार्रवाई की के दिशानिर्देशों के कडे़ रूख के बाद भी नवाबगंज तहसील की बेशकीमती जमीनें अवैध कब्जे से मुक्त नहीं हो सकी।

क्योंकि दशकों से जमे लेखपालो और राजस्वकर्मी इन अवैध  जमीन के धंधों की सुरक्षा में मजबूत दीवारों की तरह खडे़ है।

प्रशासन सख्त होकर ऐसी जमीनों को चिंहित कराने का प्रयास करता है तो एक- एक गाटे और रकबे का इतिहास भूगोल जानने वाले लेखपाल व राजस्व निरीक्षक पैमाइश में खेल कर भूमाफियाओं को लाभ पहुंचाते है।

कारण भू-माफियाओं और अवैध कब्जों का संरक्षण ही इनकी बेशुमार कमाई का सबसे मजबूत आधार।

नवाबगंज तहसील पर लेखपाल के इस कब्जे को करीब सात वर्ष पहले तत्कालीन डीएम योगेश्वर राम मिश्र ने लंबे समय से जमे लेखापाल का दूरस्थ तहसीलों में तबादला कर तोड़ा। मगर, उनके जाने के बाद लेखपालों ने अपने पॉवर व पैसे का इस्तेमाल कर पुन: नबावगंज में अपनी वापसी करा ली।

प्रमोशन के साथ तबादला भी हुआ पर फिर वापस आकर नबावगंज तहसील में ही जम गए। 

बाराबंकी जिले के नवाबगंज तहसील राजधानी लखनऊ से सटी है। वहीं लखनऊ- अयोध्या हाईवे और किसान पथ के साथ पूर्वांचल के लोगों का पनाह घर भी बनता जा रहा है।

ऐसे में यहां की जमीनों के भाव काफी महंगे है। बड़ी- बड़ी टाउन शिप विकसित की जा रही है तो प्रापर्टी डीलरों ने भी अपनी प्लानिंग कर रखी है। एक- एक जमीनों की कई बार रजिस्ट्री हुई तो कईयों के कागजों पर जमीन बेंच कर खारिज दाखिल भी करा दिया गया।

दूसरे गाटों से सड़क व पार्क के नाम छूटी जमीन बेचकर भू-माफियाओं को स्थानीय लेखपाल व राजस्व निरीक्षक से मिलकर सरकारी भूमि पर कब्जा करा दिया।

डीएम की सख्ती पर की गई पैमाइश में भी कर दिया खेल।

बड़ेल में हाल में ही डीएम की सख्ती पर की गई पैमाइश में करीब 15 बीघे बंजर भूमि को अतिक्रमण मुक्त कराते हुए एक अवैध कब्जेदार पर केस भी दर्ज कराया गया। मगर, इसी से सटी गाटा संख्या 1862 की 25 बीघे बंजर भूमि पर जहां आठ बीघे भूमि पर पीएम आवास को आवंटित कर निर्माण कराया गया।

वहीं 17 बीघे बंजर भूमि चिंहित कर इसे बेचने वाले भू-माफियाओं पर कार्रवाई नहीं हुई। क्योकि इन बंजर भूमि पर मकान बने है। यह जानते हुए जिम्मेदार उच्चाधिकारियों को सच से अवगत कराने की बजाय दूसरे गाटा नंबर की पैमाइश व चिंहीकरण कर गुमराह करने में जुटे है। 

यह तो महज बानगी है। इसी प्रकार शहर की बंजर, परती, चारागाह, चक मार्ग व तालाब की जमींने तक में प्लाटिंग कर बेंच दिया गया।

दरामनगर में स्थानीय लेखपाल ने तो सरकारी जंगल को बेंच दिया। कुछ ऐसा ही हाल बडेल, पल्हरी, माती, जिंहौली, ढकौली आलापुर व शहर के आस-पास का है।

वीवीआईपी कहीं जाने वाली इन सर्किलों में दशकों से तहसील में जमें वहीं पुराने लेखपाल है।

जो फुटबाल बन इन्हीं सर्किलों में अपनी तैनाती कराकर भूमाफियाओं और खनन-माफियों को लाभ पहुंचा रहे है। अगर इन पर कोई आंच भी आती है तो इनके बचाव में सफेदपोश व भूमाफिया अपनी पूरी ताकत लगा देते है।

बाराबंकी जिलाधिकारी सतेन्द्र कुमार जी के अनुसार। 

सदर तहसील में 10 वर्ष से अधिक समय से 8 से 10 लेखपाल तैनात होने की जानकारी है। इनकी संख्या अधिक होने के कारण ट्रांसफर सत्र में ट्रांसफर करने का नियम है। फिर भी अनुमति लेकर उनका ट्रांसफर किया जाएगा।

तहसीलों वर्षों से जमे लेखपाल। 
1,  तहसील में वर्तमान में 67 लेखपाल तैनात है
2, अधिकतम एक तहसील में 10 वर्ष तक तैनात रहने            का नियम है
3, ट्रांसफर के बाद 5 वर्ष तक इस तहसील में वापसी             नहीं होने का नियम है
4, जबकि सदर तहसील में एक दर्जन लेखपाल 12 ,14         सालों से जमे हैं।

तबादला हुआ भी तो नियम विरुद्ध तरीके से तहसील में वापसी कराकर उन्हीं सर्किल में तैनाती ले ली।

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