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एडवोकेट महेंद्र कुमार मंडल; काश ये मुलाकातें पिछड़ों, किसानों और नौजवानों के हक हकूक के लिए होती.......

काश ये मुलाकातें पिछड़ों, किसानों और नौजवानों के हक हकूक के लिए होती 

6AM_NEWS_TIMES : Edited by. Ravindra yadav Lucknow : 9415461079, 18, Nov, 2022 : Fri , 06:12 PM,



काश यह तस्वीरें, यह मुलाकातें, यह टेलीफोनिक वार्ता समाज की एकता, पिछड़ों, किसानों और नौजवानों के हक हकूक की लड़ाई और बहुजनों की हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए होती तो बेहतर होता है, लेकिन यह महज़ चुनाव जीतने के लिए हैं।

एड० महेंद्र कुमार मंडल, इलाहाबाद उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ

बेशक तस्वीर राहत और सुकून देने वाली है, लेकिन मेरे कुछ यज्ञ प्रश्न हैं और मुझे पता है कि इन प्रश्नों पर जो भक्तगण हैं चाहे वह मोदी जी के हों, योगी जी के हों या अखिलेश जी के हों कुतर्क जरूर करेंगे, क्योंकि भक्तों का काम ही है हमेशा अपने नेता का यशोगान करना और उनकी भांडगिरी करना लेकिन इस सबके परे मैं प्रश्न जरूर करूंगा।


प्रश्न 1- क्या ऐसी तस्वीरें जो एकता दिखाने के लिए शेयर की जाती हैं वह सिर्फ़ चुनाव जीतने के लिए होती हैं जाती हैं ??


प्रश्न 2- पिछले 2017 से कई चुनाव और उपचुनाव बीते और ऐसी तस्वीरें सिर्फ चुनाव के टाइम पर ही पड़ती हैं 

उसके बाद फिर एक दूसरे में बगावत शुरू होती है और समर्थक तथा समाज को दो हिस्सों में बांटा जाता है, क्या दोनों हिस्सों में बंटा समाज और समर्थक यह मानता है कि दोनों एक ही हैं ? अगर दोनों एक ही हैं तो फिर यह मुहब्बत चुनाव के टाइम पर ही क्यों परमानेंट क्यों नहीं ? और साथ रहकर समाज की लड़ाई क्यों नहीं लड़ी जाती ?


प्रश्न 3- अगर शिवपाल जी हर बार यह कहकर अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं को समझाते हैं कि नेताजी भाई हैं वहां चुनाव नहीं लड़ेंगे, डिंपल बहू है कन्नौज में प्रत्याशी नहीं देंगे, अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाना है इसलिए हर कीमत पर समझौता करेंगे और समाजवादी पार्टी के सिंबल पर ही चुनाव लड़ेंगे तथा बनाए गए सभी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को समझाएंगे, फिर कहेंगे कि नेताजी की विरासत बचानी है और बहू मैदान में है वहां चुनाव नहीं लड़ाएगे सपा का समर्थन करेंगे। माननीय शिवपाल जी बताएं कि भाई और स्वयं के खून पसीने से बनाई गई पार्टी से अलग होकर पार्टी ही क्यों बनाई?


जब बहू और भाई तथा पार्टी और विरासत से इतना लगाव प्यार मोहब्बत है तो भतीजे से फिर कैसी नाराजगी और दुश्मनी ?? भले कुछ दे या ना दे चुपचाप घर में रहें दो रोटी खाए और ठंडा पानी पिएं तथा अपनी पार्टी को खत्म करें और लोगों को समाजवादी पार्टी में शिफ्ट करके पार्टी को मजबूत करें।


बेहतर होता यह महान नेता एक दूसरे का हाथ से हाथ पकड़कर पिछड़े समाज का नेतृत्व करते और उसके हक़ हकूक की लड़ाई लड़ते तो बेहतर रहता।

लोग समझ रहे हैं ज़्यादा दिन मूर्ख नहीं बना पाएंगे मैं ऐसी एकता से हमेशा असहमत रहता हूँ भले ही किसी को तक़लीफ़ हो यह एकता सिर्फ़ अपने निजी स्वार्थों को साधने और समाज पर अपना प्रभुत्व क़ायम रखने के लिए दिखाई जाती है समाज से इसका कोई लेना देना नहीं है। समाज के लिए अगर वास्तव में चिंता है तो फिर यह सब नौटंकी बंद करके एकजुट होकर एक मंच पर आकर इस पिछड़े दलित और अल्पसंख्यक समाज की लड़ाई लड़नी होगी उन्हें भरोसा दिलाना होगा कि हम नेताजी की विरासत को आगे बढ़ाएंगे और उनके पद चिन्हों पर चलेंगे लेकिन ऐसा प्रतीत होते नहीं दिखाई देता है। भक्तगण समर्थन में तर्क करेंगे, नेताजी की विरासत बचानी है तो भाभी जी को चुनाव लड़ाया जा रहा है, जब वादा कर चुके हैं कि अब पत्नी चुनाव नहीं लड़ेंगी तो फिर ऐसा कौन सा संकट आ गया कि कोई और योग्य नहीं रह गया। अगर इसी तरह से राजनीति करते रहेंगे तो अपना कम लेकिन अपने समाज का बहुत नुकसान करेंगे।


एड० महेंद्र कुमार मंडल, अधिवक्ता उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ।







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