पूर्व सीएम मुलायम, अखिलेश के साथ सैफेई परिवार के सांसदों और विधायकों का खत्म होगा दबदबा, जानिए कैसे .....
यूपी पंचायत चुनाव के आरक्षण की सूची जारी होने के बाद राजनीतिक दलों में खलबली है। इस बार जिस आरक्षण प्रक्रिया का पालन हुआ उससे कई दिग्गजों के इलाके में सेंध लग गई हैं। सूबे के दिग्गज नेताओं के सारे समीकरण ध्वस्त हो गए है। पूर्व मुख्यमंत्री सहित कई पूर्व मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की ग्राम पंचायत पहली बार आरक्षण के दायरे में आई है।
पंचायती राज विभाग ने पहले कर दिया था इशारा था। इस बार रोटेशन के आधार पर आरक्षण होगा। पहले सैफेई परिवार घर वालों का वर्चस्व बनाएं रखने के लिए तैयार कराता था सूची।
इस बार से सबसे बड़ा झटका सपा को अपने मजबूत गढ़ इटावा में लगा है, जहां मुलायम सिंह यादव के गांव सैफाई का प्रधान और ब्लॉक प्रमुख पहली बार दलित समुदाय से चुनकर आएगा। पंचायत चुनाव में आरक्षण की लिस्ट जारी होने के बाद जनपद इटावा के लगभग एक दर्जन राजनेताओं की ग्राम पंचायतों की सीटें पहली बार परिवर्तित हुई है। ढाई दशक यानी 1995 के बाद इटावा के ब्लॉक सैफई, ब्लॉक बढ़पुरा, ब्लॉक ताखा, ब्लॉक भर्थना, ब्लॉक बसरेहर, ब्लॉक जसवंतनगर और ब्लॉक महेवा की ग्राम पंचायतों में पहली बार अनुसूचित जाति के प्रधान चुने जाएंगे। खुद योगी आदित्यनाथ के इलाके में भी बिना भेदभाव के सीटों का आरक्षण हुआ है इससे विरोध की गुंजाइश भी नही बची है। दरअसल, यूपी में पंचायती राज अधिनियम के अंतर्गत 1995 के पंचायत चुनाव में आरक्षण लागू हुआ था, जिसके तहत 33 प्रतिशत सीट सभी कटैगरी में महिलाओं के लिए, 27 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग, और 21 प्रतिशत अनुसूचित जाति और एक फीसदी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था।
सूबे में पंचायत के प्रत्येक चुनाव में यह आरक्षण लागू हुआ। लेकिन जनपद इटावा में आठ ब्लॉकों में आरक्षण लागू नहीं हुआ। इसी के चलते सूबे में आरक्षण होने के बाद भी अनुसूचित जाति को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सका। कई नेताओं की ग्रामसभा अनुसूचित जाति के लिये आरक्षित नही हुई थी, जो कि अब पहली बार आरक्षित हुई है।